Kuchh to Kahiye – a new poetry collection of Gulzar on Vani Prakashan. The collection features his Ghazals and new set of Trivenis. as he introduces the book in his forward
शुरु-शुरु में, रिवायत के मुताबिक़ नज़्मों के मजमुए में कुछ ग़ज़लें भी शामिल कर लेता था, लेकिन वो किताब के मिज़ाज के साथ नहीं जाती थीं । फिर वो छापना बन्द कर दीं । और अब वो तमाम ग़ज़लियात जमा कर के अलग से किताब बना ली।
यही ’त्रिवेणी’ के साथ हुआ। एक मजमुआ अलग से ’त्रिवेणी’ का शाया हो चुका था, लेकिन मिज़ाजन ये ’फ़ॉर्म’, ’ग़ज़ल’ और ’क़ता से मेल खाती है, इसलिये यह नयी ’त्रिवेणी’ सब इसी मजमुए में शामिल कर लीं। ये पहले कहीं शाया नहीं हुई।
Sample this…
वो दोनों दावेदार थे, अपनी ज़बान के
उर्दू तेरी ज़बां नहीं, हिंदी मेरी नहीं!
दो बेअदब अंग्रेज़ी में लड़ते हुए देखे!!
—
राख में सो गई, हिलाओ ज़रा
आग रौशन हो, गुदगुदाओ ज़रा
आफ़ताब एक उठा के लायें चलो
मैं भी चलता हूं, तुम भी आओ ज़रा
रौशनी का कोई वसीला बने
घुप अंधेरा है, मुस्कुराओ ज़रा
नाम अपना बताऊंगा, पहले
अपना मज़हब मुझे बताओ ज़रा
एक ओंकारा, ला इलाह इलल्लाह
सूफ़ियों संग गुनगुनाओ ज़रा
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