The ‘Aha! Zindagi’ special annual edition 2006 features a
comprehensive interview of gulzar saab.  An interesting anecdote on
aandhi in the same article is posted below where he says that ‘Aandhi’
was not based on Kamaleshwar ji’s novel ‘Kaali Aandhi’, infact the
novel was planned during the discussions on the script of aandhi..

Here is the devnagari script of the anecdote

 

‘काली आंधी’ से पहले ‘आंधी’…

मैं बहुत विस्तार से बताना चाहूंगा… ‘काली आंधी’ वाज़ रिटन आफ्टर ‘आंधी’
एन्ड नाट बिफोर ‘आंधी’.. ‘आंधी’ वाज़ नाट बेस्ड आन काली आंधी… काली आंधी
वाज़ बेस्ड आन आंधी । कमलेश्वर जी हमारे साथ थे, हम एक फिल्म के लिये
चेन्नई गये थे। ढूंढी साहब के पास, मल्ली साहब जौ मौसम के प्रोड्युसर
हैं, वे लेकर गये थे, कमलेश्वर थे और मेरे सहायक भूषण बनमाली थे। उस वक्त
मैं ‘आंधी’ पर काम कर रहा था। मैने सोचा चेन्नई में वहां ढूंढी साहब से
मिलना है, वहां से महाबलिपुरम जायेंगे। इस बीच में स्क्रिप्ट का पहला
ड्राफ्ट पूरा कर लूंगा । उस समय ऐसा हुआ कि ढूंढी साहब को कमलेश्वर जी की
कहानी पसन्द नहीं आई। कमलेश्वर बहुत बड़े लेखक हैं, साहित्य में उनका बहुत
बड़ा मुकाम है। । हम तो उनसे जूनियर हैं । खासतौर पर उस वक्त तो… हमारे
लिये बहुत मुश्किल हो गई… कमलेश्वर जी फ़राख़दिल.. वे जानते थे मुझे
‘सारिका’ के दिनों से.. वे मुझे ‘भाई’ कहते थे, मैं उन्हें भाई कहता हूं।
उन्होने दूसरी और कहानियां शुरु कर दीं कि कोई कहानी पसन्द आये तो
प्रोजेक्ट  फाइनल कर दें । (भूषण ने एक कहानी सुनाई… शायद ए.जे.
क्रानिन के किसी उपन्यास से प्रेरित थी.. वो कहानी पसन्द आ गई । वह
‘मौसम’ बनी ।) फिर बड़ी समस्या हुई । हम महाबलिपुरम जा रहे थे। हमने
कमलेश्वर जी को साथ ले लिया । मुम्बई में उनसे मुलाकातें होती रहती थीं,
उठना-बैठना था। ओम-शिवपुरी हमारे कामन दोस्त थे।

यह तय हो गया कि कमलेश्वर जी ‘मौसम’ की कहानी लिखेंगे, जिसे भूषण ने वहां
सुनाया था, इसलिये मैने सुझाव दिया कि आप ड्राफ्ट साथ रख लें और हम इस
प्रोजेक्ट पर साथ काम करेंगे। फिल्म स्क्रिप्ट राइटिंग एक अलग काम है ।
वह एक टीम-वर्क होता है। मैं, कमलेश्वर और भूषण थे और साथ में प्रोड्युसर
मल्ली साहब थे। ‘मौसम’ डिस्कस करते करते ‘आंधी’ की बात चलती और ‘आंधी’ की
बात में ‘मौसम’ याद आ जाती। फिर यह तय हुआ कि ‘आंधी’ और ‘मौसम’ का
स्क्रीनप्ले हम बनायेंगे और कमलेश्वर जी इन दोनों पे उपन्यास लिखेंगे। वे
कहानीकार थे, इसलिये इन दोनों पर उन्हें उपन्यास लिखने को कहा… बल्कि
‘मौसम’ पर लिखे जाने वाले उपन्यास का नाम भी मैने दिया था – ‘आगामी
अतीत’.. इस तरह से ये दोनों उपन्यास लिखे गये ।

फिल्म के लिये एक निश्चित समय के भीतर स्क्रिप्ट तैयार करना पड़ता है। हम
तीनों भोपाल गए और कार से दिल्ली की यात्रा की। दिल्ली से कमलेश्वर जी
इलाहबाद चले गये और भूषण बम्बई। मैने कहा, मैं तो ‘आंधी’ का फाइनल
ड्राफ्ट पूरा कर के ही होटल के बाहर जाऊंगा.. उस होटल के वेटर का नाम था
– जे.के. उसने बहुत खिदमत की, मैने कहा ‘मैं तुम्हें और तो कुछ दे नहीं
सकता, बस हमारी फिल्म का हीरो जो मैनेजर है, उसका नाम रख देते हैं जे.के.
इस तरह मैने उसे वेटर से मैनेजर बना दिया।

लोग पूछते हैं ‘आंधी’ में इन्दिरा गांधी कितनी हैं? मैने उस वक्त कहा था
और आज भी कहता हूं, इसमें इन्दिरा गांधी के जीवन के बारे में कुछ भी नहीं
है ।

शी वाज़ द बेस्ट माडल टू प्ले एज अ लेडी पालिटिशियन.. जब भी लेडी
पालिटिशियन बनाएं तो जाहिर है उनसे अच्छी कोई इमेज नहीं मिलती । हम
वैक्यूम में नहीं लिखते । कोई न कोइ माडल हमारे सामने होता है। उस समय
हमारे सामने दूसरा जो माडल थीं – वह थीं तारकेश्वरी सिन्हा.. जब इंटरव्यू
देते समय बहाना करना पड़ता था तब हम तारकेश्वरी सिन्हा का नाम लेते थे…!

सॄजनात्मकता के लिये संकट का सवाल यहां लागू होता है, क्योंकि बालों में
सफेद पट्टी की वजह से कुछ पत्रिकाऒं ने उल्टा समीकरण बिठाना शुरु किया और
जिनके निहित स्वार्थ थे उन्होने इसे इन्दिरा गांधी पर आरोपित करना शुरु
कर दिया ।  लोगों ने ये भी उछाला कि देखिये प्रधानमंत्री को किस तरह से
चित्रित किया है.. वह सिगरेट पीती है, शराब पीती है.. विरोधी पार्टियों
ने भी अपना स्वार्थ साधने की कोशिश की । ‘आंधी’ की नायिका सिगरेट पीती
है, और आधा ग्लास ड्रिंक.. सभी हाई सोसाइटी, मैच्योर्ड विमेन, क्रिएटिव
विमेन, इस देश की ही नहीं सारी दुनिया में सिगरेट और शराब के बारे में
वर्जनाएं नहीं हैं, लेकिन हमारी फिल्मों में केवल खलनायिकाएं या निगेटिव
विमेन ही ड्रिंक लेती हैं। मैं इस धारणा को तोड़ना चाहता था। इस बात को
सही परिपेक्ष्य में लेना चाहिये।

– गुलज़ार

अहा! ज़िन्दगी वार्षिक अंक – 2006 से साभार